तारिका (विधि), श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक-40, अध्याय-2, रूद्र वाणी
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किसी समाधान को पाने के लिए चाहे कितने भी अजीबोगरीब तरीके क्यों न अपनाए जाएँ, उसका सफल परिणाम हर चीज़ को सार्थक बना देता है। जानिए श्रीमद्भगवद्गीता में रुद्र वाणी के साथ।
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक ब्लॉग-87
श्लोक-40
नियोभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यायो न विद्यते। स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते मोटो भयात् ॥ 2-40 ||
अंग्रेजी प्रतिलेखन
नेहाभिक्रमनाशोयस्ति प्रत्यवायो न विद्यते | स्वल्पमाप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् || 2-40 ||
हिंदी अनुवाद
मनुष्य लोक में संबुद्धि रूप धर्म के आरंभ का नाश नहीं होता तथा इसके अनुष्ठान का उल्टा फल भी नहीं होता या इसका थोड़ा सा अनुष्ठान भी जन्म-मरण रूप महान भय से रक्षा कर लेता है।
अंग्रेजी अनुवाद
इसमें न तो भय की हानि होती है और न ही अपराध होता है। इस ज्ञान का थोड़ा सा भी ज्ञान महान भय से रक्षा करता है।