तारक्की (उत्कृष्टता), श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक-47, अध्याय-2, रूद्र वाणी
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उत्कृष्टता के लिए प्रयास करते रहिए, सफलता आपकी ओर दौड़ी चली आएगी। इसके बारे में और जानें श्रीमद्भगवद्गीता में रुद्र वाणी के साथ।
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक ब्लॉग-94
श्लोक-47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्माणि॥ 2-47 ||
अंग्रेजी प्रतिलेखन
कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचनः | मां कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि || 2-47 ||
हिंदी अनुवाद
कर्तव्य कर्म करने में ही तेरा अधिकार है, फल में कभी नहीं, अत: तू कर्मफल का कारण भी मत बन या तुझे कर्म न करने में भी आसक्ति न हो।
अंग्रेजी अनुवाद
तुम्हारा काम केवल कर्म से है, उसके फल से नहीं। इसलिए कर्म के फल को अपना उद्देश्य न बनने दो और कर्म के अनिश्चित परिणामों के आधार पर अकर्मण्यता में भी आसक्त मत हो जाओ।