Sukh (Happiness), Shrimad Bhagwad Geeta, Shlok-44, Chapter-2, Rudra Vaani

सुख (खुशी), श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक-44, अध्याय-2, रूद्र वाणी

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Sukh (Happiness), Shrimad Bhagwad Geeta, Shlok-44, Chapter-2, Rudra Vaani

सुख, सुख के भ्रम से उत्पन्न होने वाली मनःस्थिति है। श्रीमद्भगवद्गीता में रुद्र वाणी के साथ इसकी व्याख्या की गई है।

सुख (खुशी), श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक-44, अध्याय-2, रूद्र वाणी

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक ब्लॉग-91

श्लोक-44

भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्। व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥ 2-44 ||

अंग्रेजी प्रतिलेखन

भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् | व्यवस्यायात्मिका बुद्धिः समाधु न विधेयते || 2-44 ||

हिंदी अनुवाद

उस पुष्पित वाणी से जिसका अंत करण हर लिया गया है अरथत भोगों की तरफ खिंच गया है या जो भोग तथा ऐश्वर्या में अत्यंत आसक्त हैं उन मनुष्यों की परमात्मा में एक निश्चय वाली बुद्धि नहीं होती।

अंग्रेजी अनुवाद

जो लोग सुख और प्रभुता से चिपके रहते हैं, जिनके मन ऐसी शिक्षा से मोहित हो जाते हैं, उनके लिए यह निश्चित तर्क चिंतन पर आधारित नहीं है।

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