सोच-समझ (सोचो-पुनर्विचार), श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक-53, अध्याय-2, रूद्र वाणी
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अगर आपको लगता है कि आप ज़्यादातर चीज़ों का जवाब जानते हैं, तो दोबारा सोचें। दोबारा सोचने पर आपको पता चलेगा कि आप जितना जानने की उम्मीद करते हैं, उससे कम ही जानते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक ब्लॉग-100
श्लोक-53
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला। समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ॥ 2-53 ||
अंग्रेजी प्रतिलेखन
श्रुतिविप्रतिपन्न ते यदा स्थास्यति निश्चल | समाधावचला बौद्धदा योगमावाप्स्यसि || 2-53 ||
हिंदी अनुवाद
जिस काल में शास्त्र मतभेदों से विचलित हुई तुम्हारी बुद्धि निश्चल हो जाएगी या परमात्मा में अचल हो जाएगी, उसी काल में तुम योग को प्राप्त हो जाओगे।
अंग्रेजी अनुवाद
जब तुम्हारा मन, जो सदैव विचारों से भ्रमित रहता है, अचल होकर चिंतन में स्थिर हो जाता है, तभी तुम शुद्ध योग प्राप्त कर पाओगे।