प्रेरणा (प्रेरणा), श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक-61, अध्याय-2, रूद्र वाणी
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सकारात्मक प्रेरणा ही यात्रा में सही मुकाम तक पहुँचने की कुंजी है, भले ही मंज़िल दूर ही क्यों न हो। श्रीमद्भगवद्गीता में रुद्र वाणी के साथ और जानें।
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक ब्लॉग-108
श्लोक-61
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त असित मत्परः। वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ 2-61 ||
अंग्रेजी प्रतिलेखन
तानि सर्वाणि संयम युक्ता आसीत मत्परः | वाशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 2-61 ||
हिंदी अनुवाद
कर्मयोगी साधक एक संपूर्ण इंद्रियों को वश में करके मेरे परायण होके बैठे, क्योंकि जिसकी इंद्रियां वश में हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है।
अंग्रेजी अनुवाद
जो पुरुष समस्त इन्द्रियों को वश में करके, मुझमें मन लगाकर, मेरा स्मरण करते हुए, मेरी भक्तियोग का पालन करता है, उसकी इन्द्रियाँ वश में कर ली गई हैं, उसकी बुद्धि अच्छी तरह से स्थित मानी जाती है।