निष्कामता (नकारात्मक प्रेरणा), श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक-59, अध्याय-2, रूद्र वाणी
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कुछ न करना और कुछ बेहतर की आशा में पड़े रहना व्यक्ति के जीवित रहने के कारण को मार देता है और व्यक्ति को बेकार बना देता है।
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक ब्लॉग-106
श्लोक-59
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः। रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते ॥ 2-59 ||
अंग्रेजी प्रतिलेखन
विषय विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः | रसवर्जं रसोयाप्यस्य परम दृष्ट्वा निवर्तते || 2-59 ||
हिंदी अनुवाद
निराकार इंद्रियों को विषयों से हटाने वाले मनुष्य के भी विषय तो निवृत्त हो जाते हैं, पर रस निवृत्त नहीं होता परंतु परमात्मा का अनुभव होने से इस स्थितप्रज्ञ मनुष्य का रस भी निवृत्त हो जाता है, अर्थ उसके संसार में रस बुद्धि नहीं रह जाती।
अंग्रेजी अनुवाद
जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को उनके भोजन (अर्थात् उनके विषयों) से तृप्त नहीं करता, उससे इन्द्रिय-विषय विमुख हो जाते हैं। किन्तु जब वह इन्द्रिय-विषयों से परे परमात्मा का साक्षात्कार करता है, तो मन में जो अव्यक्त रस (इच्छा) रह गया है, वह भी विमुख हो जाता है।