ममला (दृश्य), श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक-57, अध्याय-2, रूद्र वाणी
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हर बार जब कुछ अनोखा घटित होता है, तो उस व्यक्ति के आस-पास का दृश्य ही उसे यह एहसास कराता है कि उस दृश्य की गंभीरता क्या है।
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक ब्लॉग-104
श्लोक-57
यः सर्वत्राणभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्। नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ 2-57 ||
अंग्रेजी प्रतिलेखन
यः सर्वत्राणाभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् | नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 2-57 ||
हिंदी अनुवाद
सब जगह से असक्ति रहित हुआ जो मनुष्य हमें शुभ-अशुभ को प्राप्त करके ना तो प्रसन्न होता है या ना द्वेष करता है, उसकी बुद्धि स्थिर है।
अंग्रेजी अनुवाद
जो हर तरफ है, वह आसक्ति रहित है, जबकि जो कुछ भी होता है, असफलता या बुराई, वह न तो पसंद करता है और न ही नफरत करता है, ऐसी समझ के साथ व्यक्ति वास्तव में संतुलित है।