जवाब (उत्तर), श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक-56, अध्याय-2, रूद्र वाणी
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श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक ब्लॉग-103
श्लोक-56
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु अतीतस्पृहः। वीतराग्भयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥ 2-56 ||
अंग्रेजी प्रतिलेखन
दुःखेश्वनुद्विगनमनः सुखेषु विगतस्पृहः | वीतरागाभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते || 2-56 ||
हिंदी अनुवाद
दुखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उदय नहीं होता है, सुखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में स्पृहा नहीं होती है, तथा जो राग, भय या क्रोध से सर्वथा रहित हो जाता है, वह मननशील मनुष्य स्थिर बुद्धि कहा जाता है।
अंग्रेजी अनुवाद
जो दुःख में चिन्ता से रहित है, सुख में उदासीन है, तथा जो राग, भय और क्रोध से पृथक है, वही स्थिर बुद्धि वाला मुनि है।