Harkat (Action), Shrimad Bhagwad Geeta, Shlok-58, Chapter-2, Rudra Vaani

हरकत (क्रिया), श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक-58, अध्याय-2, रूद्र वाणी

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Harkat (Action), Shrimad Bhagwad Geeta, Shlok-58, Chapter-2, Rudra Vaani

प्रत्येक क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है, इसलिए यदि आप कोई कदम उठाते हैं, तो हर कीमत पर अपने शत्रु की जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार रहें।

हरकत (क्रिया), श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक-58, अध्याय-2, रूद्र वाणी

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक ब्लॉग-105

श्लोक-58

यदा संहारते चायं कूर्मोऽङगणीव सर्वशः। इन्द्रियाणिन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ 2-58 ||

अंग्रेजी प्रतिलेखन

यदा संहर्ते चायं कूर्मोंगणीव सर्वशः | इन्द्रियानेन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य राज्ञया प्रतिष्ठिता || 2-58 ||

हिंदी अनुवाद

जिस तरह से अपने सभी अंगों को सभी या उससे समेट लेता है, ऐसे ही जिस काल में यह कर्मयोगी इंद्रियों के विषयों से इंद्रियों को सब प्रकार से हटा देता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है।

अंग्रेजी अनुवाद

जैसे कछुआ अपने सभी अंगों को अंदर खींच लेता है, वैसे ही जब कोई व्यक्ति अपनी सभी इंद्रियों को सभी विषयों से हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि संतुलित, पढ़ी-लिखी, अच्छी तरह से समझी हुई और अच्छे आचरण वाली मानी जाती है।

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