फटाफट (शीघ्र), श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक-66, अध्याय-2, रूद्र वाणी
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जब विचारों में गति होती है, तो क्रियान्वयन और कर्म में भी गति आती है। रुद्र वाणी के साथ श्रीमद्भगवद्गीता के बारे में और जानें।
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक ब्लॉग-113
श्लोक-66
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चाक्तस्य भावना। न चाभावयतः शांतिरशांतस्य कुतः सुखम् ॥ 2-66 ||
अंग्रेजी प्रतिलेखन
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चयुक्तस्य भावना | न छाभावयतः शान्तिर्षान्तस्य कुतः सुखम् || 2-66 ||
हिंदी अनुवाद
जिसके मन इंद्रियां संयमित नहीं हैं ऐसे मनुष्य की व्यवहारात्मक बुद्धि नहीं होती या व्यवहारात्मक बुद्धि ना होने से हमें अयुक्त मनुष्य में निष्काम भाव, कर्तव्य परायणता का भाव नहीं होता। निष्काम भाव न होने से उसको शांति नहीं मिलती। फ़िर शांति रहित मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है?
अंग्रेजी अनुवाद
जिसने मेरे जीवन और कर्मों का स्मरण और चिंतन करके अपने मन को नहीं जीता है और उसे स्वयं नियंत्रित करने का प्रयास नहीं करता, उसे मेरे विषयक विचारों के अभाव में स्थिर बुद्धि या मन की सही स्थिति प्राप्त नहीं होती। ऐसी स्थिति में, वह विषयों की वासनाओं का शिकार हो जाएगा और उसे शांति नहीं मिलेगी। ऐसे व्यक्ति के लिए शाश्वत सुख कैसे संभव है?