अक्षराक्ष (शाब्दिक रूप से), श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक-39, अध्याय-2, रूद्र वाणी
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कुछ चीज़ों का कोई छिपा हुआ अर्थ नहीं होता। उनका मतलब वही होता है जो वे दिखती हैं, और उन्हें ठीक वैसे ही समझना होता है जैसे वे हैं। रुद्र वाणी के साथ श्रीमद्भगवद्गीता के बारे में जानें।
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक ब्लॉग-86
श्लोक-39
एषा तेऽभिहिता साङ्ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां शृणु। बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्म बंधं प्रहास्यसि ॥ 2-39 ||
अंग्रेजी प्रतिलेखन
एषा तेयभिहिता सांख्ये बुद्धिर्यॉर्गे त्विमं श्रृणु | बुद्ध युक्तो यया कर्मबन्धं प्रहास्यसि || 2-39 ||
हिंदी अनुवाद
अर्जुन, ये संबुद्धि तुम्हारे लिए पहले सांख्ययोग में कही थी, या अब तुम इसको कर्मयोग के विषय में भी सुनो, जिस संबुद्धि से तुम कर्म बंधन का त्याग करोगे।
अंग्रेजी अनुवाद
अब तक आपने जो कुछ भी सीखा, वह सांख्य (संख्या) के अनुसार था। अब आपको ये बातें योग (सिद्धांत को व्यवहार में लाने का संचयन विज्ञान) के अनुसार सुननी चाहिए, जिससे आपका ज्ञान और शिक्षा बढ़ेगी और आपको कर्म-बंधन से मुक्ति मिलेगी।